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Thursday, March 2, 2023

हमारी प्यारी गौमाता (आशीर्वाद, लाभ और केवल लाभ प्रदात्री) - भारतीय देशी गौमाता

गौमाता


इस ग्रह पृथ्वी पर, सबसे निस्वार्थ, दयालु और उदार प्राणियों में से एक गौमाता (गाय) है। गाय माता पवित्रता और प्रेम का प्रतीक है। ये जहां भी जाती हैं, लाभ और केवल लाभ ही लाती हैं। वास्तव में, गाय ही इस ग्रह पर एकमात्र ऐसी प्राणी हैं, जो बिल्कुल भी अपशिष्ट (waste) पैदा नहीं करती हैं! यंहा तक की उनकी सांसों से भी नहीं!

वे किसी भी अन्य प्राणी की तुलना में अधिक ऑक्सीजन छोड़ती हैं। गाय के गोबर का उपयोग पौधों के लिए प्राकृतिक उर्वरक के रूप में किया जाता है; आयुर्वेदिक औषधियों में गोमूत्र का उपयोग, इसके उपचारात्मक गुणों के लिए किया जाता है और गाय के दूध को माँ के दूध के बाद सबसे अच्छा उपचारात्मक दूध माना जाता है। आध्यात्मिक रूप से, एक गाय की ऊर्जा इतनी अधिक होती है कि एक व्यक्ति गायों के साथ रहकर या उससे भी कम अवधि के लिए उनकी सेवा करके गहरी ध्यान अवस्था तक पहुँच सकता है।

1. जिस तरह से पीपल का पेड़ और पवित्र तुलसी का पौधा ऑक्सीजन देता है, उसी तरह गाय ही एकमात्र ऐसी प्राणी हैं, जो अधिक मात्रा में ऑक्सीजन छोड़ती है। जलते हुए गाय के उपले (ईंधन) पर अगर एक चम्मच शुद्ध देसी गाय का घी डाला जाए तो एक टन ऑक्सीजन पैदा कर सकते हैं। इसलिए गाय के दूध से बने घी का उपयोग यज्ञ और हवन में किया जाता है।प्रदूषण को दूर करने के लिए इससे बेहतर कोई और तरीका नहीं है।

2. भारत में लगभग 30 करोड़ मवेशी हैं। बायोगैस बनाने के लिए उनके गोबर का उपयोग करके हम हर साल 6.0 करोड़ टन जलाऊ लकड़ी बचा सकते हैं। यह काफी हद तक वनों की कटाई को रोक देगा।

3. गायों और बैलों का सबसे बड़ा ऊर्जा योगदान उनका गोबर है। भारत के मवेशी हर साल 800 मिलियन टन खाद का उत्पादन करते हैं। गाय का गोबर दूषित होने की बात तो दूर, एंटीसेप्टिक गुण रखता है। यह आधुनिक विज्ञान द्वारा सत्यापित किया गया है। यह न केवल बैक्टीरिया से मुक्त है, बल्कि यह उन्हें मारने का भी अच्छा काम करता है। मानो या न मानो, यह Lysol या Mr. Clean जितना ही अच्छा एंटीसेप्टिक है।

4. अधिकांश गोबर का उपयोग पेड़, पौधों की खाद के रूप मे, (जीवाश्म ईंधन भंडार बचाने के लिए बिना किसी कीमत पर) किया जाता है और शेष बचे हुए का उपयोग ईंधन के लिए किया जाता है। यह गंधहीन होता है और बिना झुलसे जलता है, धीमी, समान गर्मी देता है। एक गृहिणी पूरे दिन अपने बर्तनों को खाली पकने छोड़ने के लिए भरोसा कर सकती है या शॉर्ट-ऑर्डर खाना पकाने के लिए किसी भी समय पहले से गरम तवे पर लौट सकती है। गोबर को कोयले से बदलने पर भारत को प्रति वर्ष 1.5 बिलियन डॉलर का खर्च आएगा।

- उपरोकत हिन्दी लेख, नीचे लिखे लेख का संशोधित स्वरूप हैं।

मदर को (गौमाता)

On this planet Earth, one of the most selfless, compassionate and generous beings is Gaumatha (cow). Cows are a symbol of purity and love of a mother. They bring abundance wherever they go. In fact, Cows are the only beings on this planet, who do not produce any waste at all! Not even through their breath! They exhale more oxygen than any other being. Cow dung is used as Natural Fertilizer for plants; Cow urine is used in Ayurvedic Medicines for its healing properties and Cow Milk is considered to be the best healing milk after Mother's Milk. Spiritually, the energy of a cow is so high that a person can reach deeper meditative states by being with the cows or serving them for an even shorter duration.


"1.   As the peepal tree and holy basil plant give oxygen, similarly Cow is the only animal, which emits a major amount of oxygen. If one spoon of pure ghee is poured on the burning cow cakes dung (fuel) then they can produce one-ton oxygen, therefore ghee made with cow milk is used in sacrificial fires and havans. There is no other better method to remove pollution.

 2.    India has approximately 30 crore cattle. Using their dung to produce biogas, we can save 6.0 crore tons of firewood every year. This would arrest deforestation to that extent.

3.   The biggest energy contribution from cows and bulls is their dung. India’s cattle produce 800 million tons of manure every year. The cow’s dung, far from being contaminating, instead possesses antiseptic qualities. This has been verified by modern science. Not only is it free from bacteria, but it also does a good job of killing them. Believe it or not, it is every bit as good an antiseptic as Lysol or Mr. Clean.

4.   Most of the dung is used for fertilizer at no cost to the farmer or to the world’s fossil fuel reserves. The remainder is used for fuel. It is odorless and burns without scorching, giving a slow, even heat. A housewife can count on leaving her pots unattended all day or return any time to a preheated griddle for short-order cooking. To replace dung with coal would cost India $1.5 billion per year."

- This is an excerpt from a Speaking Tree article

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