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Wednesday, March 10, 2021

पुरुषोत्तम्‌ / मलमास मास में आने वाली एकादशी अर्थात्‌ 'पद्मिनी' ('कमला') एकादशी व्रत (Kamala Ekadashi Vrat Vidhi in Hindi)

पद्मिनी एकादशी या कमला एकादशी की पौराणिक कहानी भगवान कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी. युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से कहा कि हे जनार्दन मुझे मलमास/ पुरुषोत्तम्‌ मास में आने वाली पद्मिनी एकादशी के बारे में विस्तृत से बताएं और उसकी विधि समझाने की कृपा करें । भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि मलमास के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती है वह पद्मिनी (कमला) एकादशी कहलाती है. साल में वैसे तो प्रत्येक वर्ष 24 एकादशियां होती हैं, लेकिन जब मलमास आता है, तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है. मलमास के महीने में दो एकादशियां होती हैं. जो पद्मिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) और परमा एकादशी (कृष्ण पक्ष) के नाम से जानी जाती हैं।

पद्म पुराण के अनुसार पुरुषोत्तम मास यानि अधिक मास में कमला एकादशी  किया जाता है। वैसे तो एकादशी व्रतों की संख्या 24 है, लेकिन मलमास या अधिक मास होने के कारण इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। कमला एकादशी व्रत अधिक मास का एक अतिरिक्त व्रत है। इस व्रत के दिन भगवान विष्णु और उनके अनेक रूपों की पूजा की जाती है।

कमला एकादशी व्रत विधि

दशमी के दिन व्रत का संकल्प करना चाहिए। दशमी तिथि को गेहूँ, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल तथा मसूर नहीं खानी चाहिए।

कमला एकादशी व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठकर शुद्ध होना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु का धूप, तुलसी के पत्तों, कपूर, दीप, नेवैद्ध, फल, पंचामृत, फूल आदि से पूजा करने का विधान है। इस दिन सात कुम्भों (कलश) को अलग- अलग अनाजों से भरकर स्थापित कर उसके ऊपर भगवान विष्णु की मूर्ति रख पूजा करने का विधान है।

कमला एकादशी व्रत वाली रात को सोना नहीं चाहिए, बल्कि भजन- कीर्तन करते हुए, विष्णु भगवान के मंत्रों का जाप करते हुए जगना चाहिए। अगले दिन यानि द्वादशी तिथि भगवान का पूजन कर ब्राह्मण को भोजन और दान देने का विधान बताया गया है। दक्षिणा देकर ब्राह्मण को विदा करने के बाद अंत में भगवान विष्णु तथा श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए स्वयं तथा सपरिवार मौन रह कर भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए।

कमला एकादशी व्रत का महत्त्व

पद्म पुराण के अनुसार कमला एकादशी व्रत करने से साधक के सभी पापों का नाश तथा सभी भोग वस्तुओं की प्राप्ति होती है। इस महान व्रत के प्रभाव से देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और व्रती, मोक्ष तथा मृत्यु के बाद बैकुंठ धाम प्राप्त करता है। इस पुण्य व्रत को करने से मनुष्य के जन्म- जन्म के पाप भी उतर जाते हैं।

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