वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी अर्थात् वरुथिनी एकादशी -
हिन्दू धर्म शास्त्रों में हर एक एकादशी का एक विशेष महत्त्व बताया गया है। इसी क्रम में वरुथिनी एकादशी को वरुथिनी ग्यारस नाम से भी जाना जाता है। पद्म पुराण के अनुसार वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) कहा जाता है। हिन्दू धर्म में इस पुण्य व्रत को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
वरुथिनी एकादशी व्रत विधि -
वरुथिनी एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति को व्रत से एक दिन पहले यानि दशमी के दिन कांस, उड़द, मसूर, चना, कोदो, शाक, मधु, किसी दूसरे का अन्न, दो बार भोजन तथा काम क्रिया, इन दस बातों का त्याग करना चाहिए।
एकादशी के दिन भगवान का पूजन कर भजन कीर्तन करना चाहिए। द्वादशी के दिन पूजन कर ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। अतः दक्षिणा देकर विदा करने बाद स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए। एकादशी के व्रत में सोना, पान खाना, दांतुन, दूसरे की बुराई, चुगली, चोरी, हिंसा, काम क्रिया, क्रोध तथा झूठ का त्याग करना चाहिए।
वरुथिनी एकादशी व्रत का महत्त्व
पद्म पुराण के अनुसार वरुथिनी एकादशी व्रत से सुख का लाभ तथा पाप की हानि होती है। यह व्रत सभी भोग और मोक्ष प्रदान करता है। वरुथिनी एकादशी व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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