मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात् मोक्षदा एकादशी व्रत -
हिन्दू धर्म में मोक्ष को महत्त्वपूर्ण माना गया है। मान्यता है कि मोक्ष प्राप्त किए बिना मनुष्य को बार-बार इस संसार में आना पड़ता है। पद्म पुराण में मोक्ष की चाह रखने वाले प्राणियों के लिए "मोक्षदा एकादशी व्रत" रखने की सलाह दी गई है। यह व्रत मार्गशीर्ष मास की शुक्ल एकादशी को किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा की जाती है।
मोक्षदा एकादशी व्रत विधि
मोक्षदा एकादशी के दिन अन्य एकादशियों की तरह ही व्रत करने का विधान है। मोक्षदा एकादशी से एक दिन पहले यानि दशमी के दिन सात्विक भोजन करना तथा व्रत का संकल्प करना चाहिए तथा सोने से पहले भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए।
मोक्षदा एकादशी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर पूरे घर में गंगाजल छिड़क कर घर को पवित्र करना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पूजा में तुलसी के पत्तों को अवश्य शामिल करना चाहिए।
पूजा करने बाद विष्णु के अवतारों की कथा एवम् एकादशी कथा का पाठ करना चाहिए। मोक्षदा एकादशी की रात्रि को सोना नहीं चाहिए, भगवान श्रीहरि का भजन- कीर्तन करना चाहिए। द्वादशी के दिन पुन: विष्णु की पूजा कर ब्राह्मणों को भोजन करा उन्हें दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। अंत में भगवान विष्णु तथा श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए स्वयं तथा सपरिवार मौन रह कर भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए।
मोक्ष की प्राप्ति के इच्छुक जातकों के लिए हिन्दू धर्म में इस व्रत को सबसे अहम और पुण्यकारी माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत के पुण्य से मनुष्य के समस्त पाप धुल जाते हैं और उसे जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।
मोक्षदा एकदशी बहुत ही विशेष एकदशी है। यही वह शुभ दिन था जिस दिन भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में अर्जुन को श्रीमद् भगवद गीता सुनाई थी।
जो कोई भी इस दिन किसी योग्य व्यक्ति को भगवत गीता उपहार के स्वरुप में देता है, वह श्री कृष्ण द्वारा आशीर्वाद प्राप्त करता है।
पारण का मतलब व्रत खोलना होता है। एकदशी पारण, एकदशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है। द्वादशी तिथि के भीतर ही पारण करना आवश्यक है। द्वादशी के भीतर पारण नहीं करना अपराध के समान है।पारण का सबसे पसंदीदा समय प्रातःकाल है। मध्याह्न के दौरान व्रत को नहीं खोलना चाहिए। यदि कुछ कारणों से प्रातःकाल के दौरान उपवास ना खोल सके तोह व्रत मध्याह्न के बाद ही खोलना चाहिए।
कभी-कभी एकदशी का उपवास लगातार दो दिनों तक चलता है (वैष्णव या स्मार्त के रुप मे)। इसलिए, यह सलाह दी जाती है कि पारिवारिक लोग केवल वैष्णव दिन की एकादशी का उपवास करें। स्मार्त एकादशी संन्यासी और जो लोग स्मृतिओ को मानते हैं, उनके लिए है।
दोनों दिनों पर एकदशी का उपवास कट्टर श्रद्धालुओं के लिए है जो भगवान विष्णु / भगवान कृष्ण के प्यार और स्नेह के इक्छुक हैं।
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