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Thursday, March 2, 2023

हमारी प्यारी गौमाता (आशीर्वाद, लाभ और केवल लाभ प्रदात्री) - भारतीय देशी गौमाता

गौमाता


इस ग्रह पृथ्वी पर, सबसे निस्वार्थ, दयालु और उदार प्राणियों में से एक गौमाता (गाय) है। गाय माता पवित्रता और प्रेम का प्रतीक है। ये जहां भी जाती हैं, लाभ और केवल लाभ ही लाती हैं। वास्तव में, गाय ही इस ग्रह पर एकमात्र ऐसी प्राणी हैं, जो बिल्कुल भी अपशिष्ट (waste) पैदा नहीं करती हैं! यंहा तक की उनकी सांसों से भी नहीं!

वे किसी भी अन्य प्राणी की तुलना में अधिक ऑक्सीजन छोड़ती हैं। गाय के गोबर का उपयोग पौधों के लिए प्राकृतिक उर्वरक के रूप में किया जाता है; आयुर्वेदिक औषधियों में गोमूत्र का उपयोग, इसके उपचारात्मक गुणों के लिए किया जाता है और गाय के दूध को माँ के दूध के बाद सबसे अच्छा उपचारात्मक दूध माना जाता है। आध्यात्मिक रूप से, एक गाय की ऊर्जा इतनी अधिक होती है कि एक व्यक्ति गायों के साथ रहकर या उससे भी कम अवधि के लिए उनकी सेवा करके गहरी ध्यान अवस्था तक पहुँच सकता है।

1. जिस तरह से पीपल का पेड़ और पवित्र तुलसी का पौधा ऑक्सीजन देता है, उसी तरह गाय ही एकमात्र ऐसी प्राणी हैं, जो अधिक मात्रा में ऑक्सीजन छोड़ती है। जलते हुए गाय के उपले (ईंधन) पर अगर एक चम्मच शुद्ध देसी गाय का घी डाला जाए तो एक टन ऑक्सीजन पैदा कर सकते हैं। इसलिए गाय के दूध से बने घी का उपयोग यज्ञ और हवन में किया जाता है।प्रदूषण को दूर करने के लिए इससे बेहतर कोई और तरीका नहीं है।

2. भारत में लगभग 30 करोड़ मवेशी हैं। बायोगैस बनाने के लिए उनके गोबर का उपयोग करके हम हर साल 6.0 करोड़ टन जलाऊ लकड़ी बचा सकते हैं। यह काफी हद तक वनों की कटाई को रोक देगा।

3. गायों और बैलों का सबसे बड़ा ऊर्जा योगदान उनका गोबर है। भारत के मवेशी हर साल 800 मिलियन टन खाद का उत्पादन करते हैं। गाय का गोबर दूषित होने की बात तो दूर, एंटीसेप्टिक गुण रखता है। यह आधुनिक विज्ञान द्वारा सत्यापित किया गया है। यह न केवल बैक्टीरिया से मुक्त है, बल्कि यह उन्हें मारने का भी अच्छा काम करता है। मानो या न मानो, यह Lysol या Mr. Clean जितना ही अच्छा एंटीसेप्टिक है।

4. अधिकांश गोबर का उपयोग पेड़, पौधों की खाद के रूप मे, (जीवाश्म ईंधन भंडार बचाने के लिए बिना किसी कीमत पर) किया जाता है और शेष बचे हुए का उपयोग ईंधन के लिए किया जाता है। यह गंधहीन होता है और बिना झुलसे जलता है, धीमी, समान गर्मी देता है। एक गृहिणी पूरे दिन अपने बर्तनों को खाली पकने छोड़ने के लिए भरोसा कर सकती है या शॉर्ट-ऑर्डर खाना पकाने के लिए किसी भी समय पहले से गरम तवे पर लौट सकती है। गोबर को कोयले से बदलने पर भारत को प्रति वर्ष 1.5 बिलियन डॉलर का खर्च आएगा।

- उपरोकत हिन्दी लेख, नीचे लिखे लेख का संशोधित स्वरूप हैं।

मदर को (गौमाता)

On this planet Earth, one of the most selfless, compassionate and generous beings is Gaumatha (cow). Cows are a symbol of purity and love of a mother. They bring abundance wherever they go. In fact, Cows are the only beings on this planet, who do not produce any waste at all! Not even through their breath! They exhale more oxygen than any other being. Cow dung is used as Natural Fertilizer for plants; Cow urine is used in Ayurvedic Medicines for its healing properties and Cow Milk is considered to be the best healing milk after Mother's Milk. Spiritually, the energy of a cow is so high that a person can reach deeper meditative states by being with the cows or serving them for an even shorter duration.


"1.   As the peepal tree and holy basil plant give oxygen, similarly Cow is the only animal, which emits a major amount of oxygen. If one spoon of pure ghee is poured on the burning cow cakes dung (fuel) then they can produce one-ton oxygen, therefore ghee made with cow milk is used in sacrificial fires and havans. There is no other better method to remove pollution.

 2.    India has approximately 30 crore cattle. Using their dung to produce biogas, we can save 6.0 crore tons of firewood every year. This would arrest deforestation to that extent.

3.   The biggest energy contribution from cows and bulls is their dung. India’s cattle produce 800 million tons of manure every year. The cow’s dung, far from being contaminating, instead possesses antiseptic qualities. This has been verified by modern science. Not only is it free from bacteria, but it also does a good job of killing them. Believe it or not, it is every bit as good an antiseptic as Lysol or Mr. Clean.

4.   Most of the dung is used for fertilizer at no cost to the farmer or to the world’s fossil fuel reserves. The remainder is used for fuel. It is odorless and burns without scorching, giving a slow, even heat. A housewife can count on leaving her pots unattended all day or return any time to a preheated griddle for short-order cooking. To replace dung with coal would cost India $1.5 billion per year."

- This is an excerpt from a Speaking Tree article

Wednesday, March 10, 2021

पुरुषोत्तम्‌ / मलमास मास में आने वाली एकादशी अर्थात्‌ 'पद्मिनी' ('कमला') एकादशी व्रत (Kamala Ekadashi Vrat Vidhi in Hindi)

पद्मिनी एकादशी या कमला एकादशी की पौराणिक कहानी भगवान कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी. युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से कहा कि हे जनार्दन मुझे मलमास/ पुरुषोत्तम्‌ मास में आने वाली पद्मिनी एकादशी के बारे में विस्तृत से बताएं और उसकी विधि समझाने की कृपा करें । भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि मलमास के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती है वह पद्मिनी (कमला) एकादशी कहलाती है. साल में वैसे तो प्रत्येक वर्ष 24 एकादशियां होती हैं, लेकिन जब मलमास आता है, तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है. मलमास के महीने में दो एकादशियां होती हैं. जो पद्मिनी एकादशी (शुक्ल पक्ष) और परमा एकादशी (कृष्ण पक्ष) के नाम से जानी जाती हैं।

पद्म पुराण के अनुसार पुरुषोत्तम मास यानि अधिक मास में कमला एकादशी  किया जाता है। वैसे तो एकादशी व्रतों की संख्या 24 है, लेकिन मलमास या अधिक मास होने के कारण इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। कमला एकादशी व्रत अधिक मास का एक अतिरिक्त व्रत है। इस व्रत के दिन भगवान विष्णु और उनके अनेक रूपों की पूजा की जाती है।

कमला एकादशी व्रत विधि

दशमी के दिन व्रत का संकल्प करना चाहिए। दशमी तिथि को गेहूँ, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल तथा मसूर नहीं खानी चाहिए।

कमला एकादशी व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठकर शुद्ध होना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु का धूप, तुलसी के पत्तों, कपूर, दीप, नेवैद्ध, फल, पंचामृत, फूल आदि से पूजा करने का विधान है। इस दिन सात कुम्भों (कलश) को अलग- अलग अनाजों से भरकर स्थापित कर उसके ऊपर भगवान विष्णु की मूर्ति रख पूजा करने का विधान है।

कमला एकादशी व्रत वाली रात को सोना नहीं चाहिए, बल्कि भजन- कीर्तन करते हुए, विष्णु भगवान के मंत्रों का जाप करते हुए जगना चाहिए। अगले दिन यानि द्वादशी तिथि भगवान का पूजन कर ब्राह्मण को भोजन और दान देने का विधान बताया गया है। दक्षिणा देकर ब्राह्मण को विदा करने के बाद अंत में भगवान विष्णु तथा श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए स्वयं तथा सपरिवार मौन रह कर भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए।

कमला एकादशी व्रत का महत्त्व

पद्म पुराण के अनुसार कमला एकादशी व्रत करने से साधक के सभी पापों का नाश तथा सभी भोग वस्तुओं की प्राप्ति होती है। इस महान व्रत के प्रभाव से देवी लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और व्रती, मोक्ष तथा मृत्यु के बाद बैकुंठ धाम प्राप्त करता है। इस पुण्य व्रत को करने से मनुष्य के जन्म- जन्म के पाप भी उतर जाते हैं।

माघ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी अर्थात्‌ षटतिला एकादशी व्रत (Shattila Ekadashi Vrat)

माघ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी अर्थात्‌ षटतिला एकादशी व्रत -

माघ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी व्रत किया जाता है। इस दिन तिल का विशेष महत्त्व है। पद्म पुराण के अनुसार इस दिन उपवास करके तिलों से ही स्नान, दान, तर्पण और पूजा की जाती है। इस दिन तिल का इस्तेमाल स्नान, प्रसाद, भोजन, दान, तर्पण आदि सभी चीजों में किया जाता है। तिल के छ: प्रकार के उपयोग के कारण ही इस दिन को षटतिला एकादशी कहते हैं।

षटतिला एकादशी व्रत विधि

माघ माह हिन्दू धर्म में बेहद पवित्र माना जाता है। इस महीने मनुष्य को अपनी इंद्रियों को काबू में रखते हुए क्रोध, अहंकार, काम, लोभ व चुगली आदि का त्याग करना चाहिए। षटतिला एकादशी की व्रत विधि अन्य एकादशी से थोड़ा भिन्न है।

माघ माह के कृष्ण पक्ष की दशमी को भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए गोबर में तिल मिलाकर 108 उपले बनाने चाहिए। इसके बाद दशमी के दिन मात्र एक समय भोजन करना चाहिए और भगवान का स्मरण करना चाहिए।दशमी के दिन एकादशी व्रत का संकल्प करना चाहिए।

षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पद्म पुराण के अनुसार चन्दन, अरगजा, कपूर, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। उसके बाद श्रीकृष्ण नाम का उच्चारण करते हुए कुम्हड़ा, नारियल अथवा बिजौर के फल से विधि विधान से पूज कर अर्घ्य देना चाहिए। एकादशी की रात को भगवान का भजन- कीर्तन करना चाहिए। एकादशी के रात्रि को 108 बार "ऊं नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र से उपलों को हवन में स्वाहा करना चाहिए। एकादशी को रात में सोना नहीं चाहिए बल्कि भजन- कीर्तन करते हुए रात बितानी चाहिए। अगले दिन यानि पारण/ द्वादशी के दिन नहा- धोकर भगवान विष्णु व ब्राह्मण का पूजन करना चाहिए।

इसके बाद ब्राह्मण की पूजा कर उसे घड़ा, छाता, जूता, तिल से भरा बर्तन व वस्त्र दान देना चाहिए। यदि संभव हो तो काली गाय दान करनी चाहिए। तिल से स्नान, उबटन, होम, तिल का दान, तिल को भोजन व पानी में ग्रहण करने के लिए मिलाना चाहिए। दक्षिणा देकर ब्राह्मण को विदा करने के बाद अंत में भगवान विष्णु तथा श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए स्वयं तथा सपरिवार मौन रह कर भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए।

शट तिला एकदशी के अनुष्ठान

शट तिला एकदशी के दिन स्नान के पानी में तिल के बीज मिलाकर स्नान करने का बहुत महत्व है। भक्त भी ‘शट तिल एकदशी' पर 'तिल' का इस्तेमाल खाने के लिए करते हैं। इस दिन भक्तों को अपने मन में केवल आध्यात्मिक विचार ही लाने चाहिए और लालच वासना और क्रोध को अपने विचारों पर हावी नहीं होने देना चाहिए। भक्त शट तिल एकदशी पर धार्मिक उपवास रखते हैं और पूरे दिन खाते या पीते नहीं है। लेकिन यदि आप पूरी तरह से व्रत रखने में सक्षम नहीं है तो आप आंशिक उपवास भी रख सकते है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सख्त उपवास नियमों की तुलना में भगवान से प्यार अधिक महत्वपूर्ण है। हालांकि कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जो सभी को एकदशी के दिन नहीं खाना चाहिए जैसे की अनाज, चावल और दालें।

भगवान विष्णु शट तिला एकादशी के मुख्य देवता हैं। भगवान की मूर्ति पंचमृत में नेह्लाई जाती है, जिसमे तिल के बीज निश्चित रूप से मिश्रित करने चाहिए। बाद में भगवान विष्णु को खुश करने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रसाद तैयार किये जाते हैं। शट तिला एकादशी पर भक्त पूरी रात जागते रहते हैं और भगवान विष्णु के नाम का प्रचुर भक्ति और श्रधा के साथ जप करते हैं। कुछ स्थानों पर, भक्त इस सम्मानित दिन यज्ञ भी आयोजित करते है।

माघ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ जया एकादशी व्रत (Jaya Ekadashi Vrat)

माघ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ जया एकादशी व्रत -

सनातन / हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत को बहुत ही पुण्य माना जाता है, क्योंकि इसके प्रभाव से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। पद्म पुराण के अनुसार माघ माह की शुक्ल एकादशी को जया एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करने का विधान है।

जया एकादशी व्रत विधि

जया एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु के अवतार 'श्रीकृष्ण जी' की पूजा का विधान है। जो व्यक्ति जया एकादशी व्रत का संकल्प लेना चाहता है, उसे व्रत के एक दिन पहले यानि दशमी के दिन एक बार ही भोजन करना चाहिए।

इसके बाद एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चहिये। एकादशी के दिन प्रात: नहा- धोकर शुद्ध हो कर धूप, फल, दीप, पंचामृत आदि से भगवान की पूजा करनी चाहिए। जया एकादशी की रात को सोना नहीं चाहिए, बल्कि भगवान का भजन- कीर्तन व सहस्त्रनाम का पाठ एवम्‌ किर्तन आदि करना चाहिए। 

द्वादशी अथवा पारण के दिन स्नानादि के बाद पुनः भगवान का पूजन करने का विधान है। पूजन के बाद भगवान को भोग लगाकर प्रसाद वितरण करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन करा कर क्षमता अनुसार दान देना चाहिए। अंत में भगवान विष्णु तथा श्रीकृष्ण नाम का स्मरण करते हुए स्वयं तथा सपरिवार मौन रह भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए।

जया एकादशी व्रत का महत्त्व

जया एकादशी के दिन व्रत करने से समस्त वेदों का ज्ञान, यज्ञों तथा अनुष्ठानों का पुण्य मिलता है। जया एकादशी व्रत के प्रभाव से मनुष्य के सभी पापों का नाश होता है। यह व्रत व्यक्ति को भोग तथा मोक्ष प्रदान करता है। इस पुण्य व्रत को करने से मनुष्य को कभी भी प्रेत योनि में नहीं जाना पड़ता।

पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ पुत्रदा एकादशी व्रत (Putrada Ekadashi Vrat)

पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ पुत्रदा एकादशी व्रत -

पद्म पुराण के अनुसार सांसारिक सुखों की प्राप्ति और पुत्र इच्छुक भक्तों के लिए पुत्रदा एकादशी व्रत को फलदायक माना जाता है। यह व्रत पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। संतानहीन या पुत्र हीन जातको के लिए इस व्रत को बेहद अहम माना जाता है।

पुत्रदा एकादशी व्रत विधि

एकादशी व्रत रखने वाले व्यक्ति को लहसुन, प्याज आदि नहीं खाना चाहिए। दशमी के दिन किसी प्रकार का भोग-विलास नहीं करना चाहिए। दशमी को प्रात: काल व्रत का संकल्प करना चाहिए। 

पुत्रदा एकादशी के दिन सुबह स्नानादि से शुद्ध होकर उपवास करना चाहिए। भगवान विष्णु और विशेषकर विष्णु जी के बाल गोपाल रूप की पूजा करनी चाहिए। एकादशी को रात में सोना नहीं चाहिए बल्कि भजन- कीर्तन करते हुए रात बितानी चाहिए। द्वादशी को भगवान विष्णु की अर्घ्य देकर पूजा संपन्न करनी चाहिए। द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन करवाने के बाद उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। दक्षिणा देकर ब्राह्मण को विदा करने के बाद अंत में भगवान विष्णु तथा श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए स्वयं तथा सपरिवार मौन रह कर भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए।

मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ मोक्षदा एकादशी व्रत (Mokshada Ekadashi Vrat)

मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ मोक्षदा एकादशी व्रत -

हिन्दू धर्म में मोक्ष को महत्त्वपूर्ण माना गया है। मान्यता है कि मोक्ष प्राप्त किए बिना मनुष्य को बार-बार इस संसार में आना पड़ता है। पद्म पुराण में मोक्ष की चाह रखने वाले प्राणियों के लिए "मोक्षदा एकादशी व्रत" रखने की सलाह दी गई है। यह व्रत मार्गशीर्ष मास की शुक्ल एकादशी को किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा की जाती है। 

मोक्षदा एकादशी व्रत विधि 

मोक्षदा एकादशी के दिन अन्य एकादशियों की तरह ही व्रत करने का विधान है। मोक्षदा एकादशी से एक दिन पहले यानि दशमी के दिन सात्विक भोजन करना तथा व्रत का संकल्प करना चाहिए तथा सोने से पहले भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। 

मोक्षदा एकादशी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर पूरे घर में गंगाजल छिड़क कर घर को पवित्र करना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पूजा में तुलसी के पत्तों को अवश्य शामिल करना चाहिए। 

पूजा करने बाद विष्णु के अवतारों की कथा एवम्‌ एकादशी कथा का पाठ करना चाहिए। मोक्षदा एकादशी की रात्रि को सोना नहीं चाहिए, भगवान श्रीहरि का भजन- कीर्तन करना चाहिए। द्वादशी के दिन पुन: विष्णु की पूजा कर ब्राह्मणों को भोजन करा उन्हें दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। अंत में भगवान विष्णु तथा श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए स्वयं तथा सपरिवार मौन रह कर भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए।

मोक्ष की प्राप्ति के इच्छुक जातकों के लिए हिन्दू धर्म में इस व्रत को सबसे अहम और पुण्यकारी माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत के पुण्य से मनुष्य के समस्त पाप धुल जाते हैं और उसे जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। 

मोक्षदा एकदशी बहुत ही विशेष एकदशी है। यही वह शुभ दिन था जिस दिन भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में अर्जुन को श्रीमद् भगवद गीता सुनाई थी। 

जो कोई भी इस दिन किसी योग्य व्यक्ति को भगवत गीता उपहार के स्वरुप में देता है, वह श्री कृष्ण  द्वारा आशीर्वाद प्राप्त करता है। 

पारण का मतलब व्रत खोलना होता है। एकदशी पारण, एकदशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है। द्वादशी तिथि के भीतर ही पारण करना आवश्यक है। द्वादशी के भीतर पारण नहीं करना अपराध के समान है।पारण का सबसे पसंदीदा समय प्रातःकाल है। मध्याह्न के दौरान व्रत को नहीं खोलना चाहिए। यदि कुछ कारणों से प्रातःकाल के दौरान उपवास ना खोल सके तोह व्रत मध्याह्न के बाद ही खोलना चाहिए। 

कभी-कभी एकदशी का उपवास लगातार दो दिनों तक चलता है (वैष्णव या स्मार्त के रुप मे)। इसलिए, यह सलाह दी जाती है कि पारिवारिक लोग केवल वैष्णव दिन की एकादशी का उपवास करें। स्मार्त एकादशी संन्यासी और जो लोग स्मृतिओ को मानते हैं, उनके लिए है। 

दोनों दिनों पर एकदशी का उपवास कट्टर श्रद्धालुओं के लिए है जो भगवान विष्णु / भगवान कृष्ण के प्यार और स्नेह के इक्छुक हैं।

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ पापाकुंशा एकादशी व्रत (Papakunsha Ekadashi Vrat)

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ पापाकुंशा एकादशी व्रत -

हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापाकुंशा एकादशी कहा जाता है। इस शुभ दिन भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा की जाती है तथा पालकी में मूर्तियों को स्थापित कर शोभा यात्रा निकाली जाती है। इस पुण्य व्रत को करने से यमलोक में यातनाएँ नहीं सहनी  पड़ती।

पापाकुंशा एकादशी व्रत विधि

पापाकुंशा एकादशी से एक दिन पहले यानि दशमी के दिन गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौं, चावल तथा मसूर नहीं खानी चाहिए। दशमी के दिन व्रत का संकल्प करना चाहिए। एकादशी के दिन प्रात: नहा- धोकर शुद्ध होना चाहिए। स्नान करने के बाद पूजा तथा हवन करना चाहिए। भगवान विष्णु का धूप, तुलसी के पत्तों, दीप, नेवैद्ध व फूल आदि से पूजा करने का विधान है। इस शुभ व्रत तिथि के दिन सात कुम्भों को अलग- अलग धन्यों (गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौं, चावल और मसूर) से भरकर स्थापित किया जाता है। स्थापित किए हुए कल्श के ऊपर भगवान विष्णु की मूर्ति रख पूजा करने का विधान है।

पापाकुंशा एकादशी व्रत वाली रात को भगवान का भजन- कीर्तन या जागरण करना चाहिए। एकादशी को रात में सोना नहीं चाहिए। अगले दिन यानि पारण/ द्वादशी के दिन नहा- धोकर भगवान विष्णु व ब्राह्मण का पूजन करना चाहिए। पूजा के बाद ब्राह्मण को भोजन करना चाहिए। ब्राह्मण को कलश, वस्त्र आदि दान करना चाहिए। । दक्षिणा देकर ब्राह्मण को विदा करने के बाद अंत में भगवान विष्णु तथा श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए स्वयं तथा सपरिवार मौन रह कर भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए।

पापाकुंशा एकादशी व्रत का महत्त्व

पद्म पुराण के अनुसार पापाकुंशा एकादशी व्रत करने से साधक के सभी पापों का नाश तथा सभी भोग वस्तुओं की प्राप्ति होती है। इस महान व्रत के प्रभाव से व्रती, मोक्ष तथा मृत्यु के बाद बैकुंठ धाम प्राप्त करता है। मृत्यु के बाद यमराज की सजा से मुक्ति मिलती है। इस पुण्य व्रत को करने से मनुष्य के कई जन्मों का उद्धार होता है।

मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ "उत्पन्ना एकादशी व्रत" (Utpanna Ekadashi Vrat)

मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ "उत्पन्ना एकादशी व्रत" -

मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को "उत्पन्ना एकादशी व्रत" किया जाता है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी के दिन देवी एकादशी का जन्म हुआ था, जिन्होंने मुर नामक दैत्य का वध कर भगवान विष्णु की रक्षा की थी।

उत्पन्ना एकादशी व्रत विधि

पद्म पुराण के अनुसार उत्पन्ना एकादशी व्रत में भगवान विष्णु समेत देवी एकादशी की पूजा का भी विधान है। इसके अनुसार मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की दशमी को भोजन के बाद अच्छी तरह से दातौन करना चाहिए ताकि अन्न का अंश मुँह में न रहे। दशमी के दिन व्रत का संकल्प करना चाहिए । उत्पन्ना एकादशी के दिन सुबह उठकर शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए।

इसके बाद धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह सामग्री से भगवान श्रीकृष्ण का पूजन, तथा रात को दीपदान करना चाहिए। उत्पन्ना एकादशी की सारी रात भगवान का भजन- कीर्तन करना चाहिए। श्री हरि विष्णु से अनजाने में हुई भूल या पाप के लिए क्षमा माँगनी चाहिए। अगली सुबह पुनः भगवान श्रीकृष्ण की पूजा कर ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। भोजन के बाद ब्राह्मण को क्षमता के अनुसार दान दे देकर विदा करना चाहिए। तत्पश्चात्‌ भगवान विष्णु तथा श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए स्वयं तथा सपरिवार मौन रह कर भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए।

उत्पन्ना एकादशी व्रत का महत्त्व

मान्यता है कि जो मनुष्य उत्पन्ना एकादशी का व्रत पूरे विधि- विधान से करता है, उसे सभी तीर्थों का फल व भगवान विष्णु के धाम को प्राप्त करता है। व्रत के दिन दान करने से लाख गुना वृद्धि के फल की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति निर्जल संकल्प लेकर उत्पन्ना एकादशी व्रत रखता है, उसे मोक्ष व भगवान विष्णु की प्राप्ति होती है। उत्पन्ना एकादशी व्रत रखने से व्यक्ति के सभी प्रकार के पापों का नाश होता है।

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ अजा एकादशी व्रत (Aja Ekadashi Vrat)

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ अजा एकादशी व्रत -

पद्म पुराण के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा तथा व्रत करने का विधान है। 

अजा एकादशी व्रत विधि

अजा एकादशी व्रत नियमों का पालन भाद्रपद मास की कृष्ण दशमी के दिन से करना करना चाहिए। नियमों के अनुसार दशमी के दिन मसूर की दाल, चना, करोदें, शाक आदि भोजन नहीं करना चाहिए। व्रत संकल्प लेकर भगवान श्रीहरि का नाम जपना चहिये।

अजा एकादशी व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठकर नित्यक्रियाओं से मुक्त होना चाहिए। पूरे घर को जल से शुद्ध करना चाहिए तथा इसके बाद तिल के तेल या मिट्टी के लेप से स्नान करना चाहिए। भगवान श्रीहरि का पूजन करना चाहिए। पूजा के स्थान पर भगवान विष्णु जी की प्रतिमा के साथ एक कलश रखने का विधान हैं। इसके बाद विष्णु जी की धूप, फल, फूल, दीप, पंचामृत आदि से पूजा करनी चाहिए।

एकादशी को रात में सोना नहीं चाहिए बल्कि भजन- कीर्तन करते हुए रात बितानी चाहिए। अगले दिन यानि पारण/ द्वादशी के दिन नहा- धोकर भगवान विष्णु व ब्राह्मण का पूजन करना चाहिए। पूजा के बाद ब्राह्मण को भोजन करना चाहिए। ब्राह्मण को कलश, वस्त्र आदि दान करना चाहिए। । दक्षिणा देकर ब्राह्मण को विदा करने के बाद अंत में भगवान विष्णु तथा श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए स्वयं तथा सपरिवार मौन रह कर भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए।

अजा एकादशी व्रत का महत्त्व

सभी व्रतों में अजा एकादशी व्रत को श्रेष्ठ कहा जाता है। यह व्रत साधक को मोक्ष तथा धर्म की राह पर चलने की प्रेरणा प्रदान करता है। पद्म पुराण के अनुसार अजा एकादशी व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ, तीर्थ- स्थानों में स्नान तथा कठोर तपस्या के बराबर फल प्राप्त होता है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के पापों का नाश तथा मन की शुद्धि करता है।

फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष एकादशी अर्थात्‌ आमलकी एकादशी व्रत (Amalaki Ekadashi Vrat)

 फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष एकादशी अर्थात्‌ आमलकी एकादशी व्रत -

फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को आमलकी एकादशी कहा जाता है। आमलकी का मतलब आंवला होता है, जिसे हिन्दू धर्म शास्त्रों में गंगा के समान श्रेष्ठ बताया गया है। पद्म पुराण के अनुसार आमलकी या आंवला का वृक्ष भगवान विष्णु को बेहद प्रिय होता है। पीपल के समान आंवले के पेड़ में सभी देवताओं का वास होता है।

आमलकी एकादशी व्रत विधि

पद्म पुराण के अनुसार आमलकी दशमी के दिन व्रत का संकल्प करना चाहिए। एकादशी के दिन प्रात: नहा- धोकर शुद्ध होना चाहिए। स्नान करने के बाद पूजा तथा हवन करना चाहिए। पूजा के बाद आमलकी यानि आंवले वृक्ष के नीचे नवरत्न युक्त कलश स्थापित करना चाहिए। इन सब चीजों के अभाव में विष्णु जी की सामान्य पूजा में आंवले को शामिल करना चाहिए।

एकादशी को रात में सोना नहीं चाहिए बल्कि भजन- कीर्तन करते हुए रात बितानी चाहिए। अगले दिन यानि पारण/ द्वादशी के दिन नहा- धोकर भगवान विष्णु व ब्राह्मण का पूजन करना चाहिए। पूजा के बाद ब्राह्मण को भोजन करना चाहिए। ब्राह्मण को कलश, वस्त्र आदि दान करना चाहिए। । दक्षिणा देकर ब्राह्मण को विदा करने के बाद अंत में भगवान विष्णु तथा श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए स्वयं तथा सपरिवार मौन रह कर भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए।

आमलकी एकादशी व्रत का महत्त्व 

पद्म पुराण के अनुसार आमलकी एकादशी व्रत करने से तीर्थ स्थानों जितना पुण्य फल मिलता है। सभी यज्ञों के बराबर फल देने वाले इस आमलकी एकादशी व्रत को करने से व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है तथा मृत्यु के बाद भगवान विष्णु के धाम में जाता है।

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ 'देवशयनी'/ 'प्रबोधनी' एकादशी व्रत (Devshayani ekadashi Vrat)

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ 'देवशयनी' एकादशी व्रत -

पद्म पुराण के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को 'देवशयनी' एकादशी कहा जाता है। देवशयनी या देवदेवशयनी एकादशी से चातुर्मास की शुरूआत मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु सोने चले जाते हैं और कार्तिक माह में जागते हैं। इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य जैसे विवाह आदि नहीं किया जाता। गृहस्थ को चातुर्मास मे आने वाली सभी एकदशी तिथि के उपवास करने चाहिए और चातुर्मास  के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रत करने चाहिए। कोई भी एकदशी बडी या छोटी नही होती हैं, सभी एकादशीयां सामान हैं।

देवशयनी एकादशी को देवदेवशयनी, हरिदेवशयनी, पद्मनाभा तथा प्रबोधनी एकादशी भी कहा जाता है। पद्म पुराण के अनुसार इस शुभ दिन भगवान विष्णु की पूजा तथा जागरण का विशेष महत्त्व होता है, क्योंकि इस दिन भगवान का शयन काल शुरू होता है।

देवशयनी एकादशी व्रत विधि 

देवदेवशयनी एकादशी व्रत के नियमों का पालन दशमी यानि व्रत के एक दिन पहले से किया जाता है। दशमी की दिन एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चहिये और एक बार भोजन करना चहिये तथा उसमे भी नमक नहीं खाना चाहिए।

अगले दिन मतलब व्रत वाले दिन सुबह उठकर स्नानादी से निवृत्त होकर भगवान नाम जप करते हुए दिन बिताना चहिये। भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को आसान जमाकर पंचामृत, धूप, दीप फूल, फल षोडशोपचार आदि से पूजन करने का विधान है। पूजन के पश्चात ताम्बूल, पुंगीफल भगवान को चढ़ाकर कर विशेष मंत्रों द्वारा स्तुति करनी चाहिए।

एकादशी को रात में सोना नहीं चाहिए बल्कि भजन- कीर्तन करते हुए रात बितानी चाहिए। अगले दिन यानि पारण के दिन पुनः पूजन कर ब्राह्मण को भोजन और दान करना चाहिए। दक्षिणा देकर ब्राह्मण को विदा करने के बाद अंत में भगवान विष्णु तथा श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए स्वयं तथा सपरिवार मौन रह कर भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए।

देवशयनी एकादशी व्रत का महत्त्व 

पद्म पुराण के अनुसार आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानि देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का कमल के फूलों से पूजन करने से तीनों लोकों के देवताओं का पूजन हो जाता है। इस व्रत को करने वाला व्यक्ति परम गति को प्राप्त करता है। जो व्यक्ति चातुर्मास के दौरान दीपदान एकादशी व्रत तथा पलाश के पत्तों पर भोजन करते हैं वे भगवान विष्णु के बहुत प्रिय होते है तथा मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त कर स्वर्ग में जाते हैं। पद्म पुराण के अनुसार चातुर्मास यानि चौमास में कुछ चीजों का परहेज बताया गया है: सावन में साग, भादों में दही, क्वार में दूध, और कार्तिक में दाल का त्याग करना चाहिए।

चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ कामदा एकादशी व्रत (Kamada Ekadashi Vrat)

चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ कामदा एकादशी व्रत -

हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत ही बड़ा महत्त्व है। चैत्र मास की शुक्ल एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है। पद्म पुराण के अनुसार कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है। कामदा एकादशी व्रत (Kamada Ekadashi Vrat) के प्रभाव से मनुष्य प्रेत योनि से मुक्ति पाता है। 

कामदा एकादशी व्रत विधि

हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अनुसार कामदा एकादशी के दिन स्नानादि से शुद्ध होकर व्रत संकल्प लेना चाहिए। इसके पश्चात भगवान विष्णु का फल, फूल, दूध, पंचामृत, तिल आदि से पूजन करने की सलाह दी गई है। रात में सोना नहीं चाहिए बल्कि भजन- कीर्तन करते हुए रात बितानी चाहिए। अगले दिन यानि पारण के दिन पुनः पूजन कर ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। दक्षिणा देकर ब्राह्मण को विदा करने के बाद अंत में भगवान विष्णु तथा कृष्ण का स्मरण करते हुए स्वयं तथा सपरिवार मौन रह कर भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए।

कामदा एकादशी व्रत का महत्त्व

कामदा एकादशी व्रत का विधि- विधान द्वारा पालन करने से मनुष्य के सभी पाप दूर हो जाते हैं। कामदा एकादशी व्रत की कथा सुनने या सुनाने से भी समान पुण्य मिलता है।

ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ अपरा एकादशी व्रत (Apara Ekadashi Vrat)

ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ अपरा एकादशी व्रत -

अपरा एकादशी को अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पद्म पुराण के अनुसार ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु व उनके पांचवें अवतार वामन ऋषि की पूजा की जाती है। अपरा एकादशी व्रत (Apara Ekadashi Vrat) के प्रभाव से अपार खुशियों की प्राप्ति तथा पापों का नाश होता है।

अपरा एकादशी व्रत विधि

अपरा एकादशी के दिन भगवान के पूजन का विधान है, जिसके लिए मनुष्य को तन और मन से स्वच्छ होना चाहिए। इस पुण्य व्रत की शुरूआत दशमी के दिन से व्रत का संकल्प लेने से शुरु हो जाती हैं। दश्मी के दिन साधक को नित क्रियाओं से निवृत्त होकर स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद एकाद्शी के दिन भगवान विष्णु, कृष्ण तथा बलराम का धूप, दीप, फल, फूल, तिल आदि से पूजा करने का विशेष विधान है। पूरे दिन निर्जल उपवास करना चाहिए, यदि संभव ना हो तो पानी तथा एक समय फल आहार ले सकते हैं। रात्रि मे जागरण करते हुए और भगवन नाम लेते  हुए व्यतित करनी चहिये। 

द्वादशी के दिन यानि पारण के दिन भगवान का पुनः पूजन कर कथा का पाठ करना चाहिए। कथा पढ़ने के बाद प्रसाद वितरण, ब्राह्मण को भोजन तथा दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। अंत में भगवान विष्णु तथा श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए स्वयं तथा सपरिवार मौन रह कर भोजन ग्रहण करना चाहिए।

अपरा एकादशी व्रत का महत्त्व 

धर्म शास्त्रों के अनुसार अपरा एकादशी व्रत करने से गर्भपात, ब्रह्महत्या, राक्षस योनि, झूठ, बुराई व अन्य पापों से मुक्ति मिलती है। इस पुण्य व्रत के प्रभाव, तीर्थ यात्रा, पिंड दान, सुवर्ण दान आदि से बढ़कर है। जो व्यक्ति पूरे विधि- विधान से अपरा एकादशी व्रत करता है, उसे सौभाग्य की प्राप्ति, पापों से मुक्ति तथा मृत्यु के बाद भगवान विष्णु का धाम प्राप्त होता है।

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ मोहिनी एकादशी व्रत (Mohini Ekadashi Vrat)

पद्म पुराण के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह व्रत मोह बंधन तथा पापों से मुक्ति दिलाता है। सीता माता की खोज के दौरान भगवान राम ने तथा महाभारत काल में युधिष्ठिर ने मोहिनी एकादशी व्रत (Mohini Ekadashi Vrat) कर अपने सभी दुखों से छुटकारा पाया था


मोहिनी एकादशी व्रत कथा एवम् विधि

धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे कृष्ण! वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी कथा क्या है? इस व्रत की क्या विधि है, यह सब विस्तारपूर्वक बताइए। 

श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! मैं आपसे एक कथा कहता हूँ, जिसे महर्षि वशिष्ठ ने श्री रामचंद्रजी से कही थी। एक समय श्रीराम बोले कि हे गुरुदेव! कोई ऐसा व्रत बताइए, जिससे समस्त पाप और दु:ख का नाश हो जाए। मैंने सीताजी के वियोग में बहुत दु:ख भोगे हैं।

महर्षि वशिष्ठ बोले- हे राम! आपने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। आपकी बुद्धि अत्यंत शुद्ध तथा पवित्र है। यद्यपि आपका नाम स्मरण करने से मनुष्य पवित्र और शुद्ध हो जाता है तो भी लोकहित में यह प्रश्न अच्छा है। वैशाख मास में जो एकादशी आती है उसका नाम मोहिनी एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य सब पापों तथा दु:खों से छूटकर मोहजाल से मुक्त हो जाता है। मैं इसकी कथा कहता हूँ। ध्यानपूर्वक सुनो।

सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की एक नगरी में द्युतिमान नामक चंद्रवंशी राजा राज करता था। वहाँ धन-धान्य से संपन्न व पुण्यवान धनपाल नामक वैश्य भी रहता है। वह अत्यंत धर्मालु और विष्णु भक्त था। उसने नगर में अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुएँ, सरोवर, धर्मशाला आदि बनवाए थे। सड़कों पर आम, जामुन, नीम आदि के अनेक वृक्ष भी लगवाए थे। उसके 5 पुत्र थे- सुमना, सद्‍बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि। 

इनमें से पाँचवाँ पुत्र धृष्टबुद्धि महापापी था। वह पितर आदि को नहीं मानता था। वह वेश्या, दुराचारी मनुष्यों की संगति में रहकर जुआ खेलता और पर-स्त्री के साथ भोग-विलास करता तथा मद्य-मांस का सेवन करता था। इसी प्रकार अनेक कुकर्मों में वह पिता के धन को नष्ट करता रहता था।

इन्हीं कारणों से त्रस्त होकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया था। घर से बाहर निकलने के बाद वह अपने गहने-कपड़े बेचकर अपना निर्वाह करने लगा। जब सबकुछ नष्ट हो गया तो वेश्या और दुराचारी साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया। अब वह भूख-प्यास से अति दु:खी रहने लगा। कोई सहारा न देख चोरी करना सीख गया। 

एक बार वह पकड़ा गया तो वैश्य का पुत्र जानकर चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। मगर दूसरी बार फिर पकड़ में आ गया। राजाज्ञा से इस बार उसे कारागार में डाल दिया गया। कारागार में उसे अत्यंत दु:ख दिए गए। बाद में राजा ने उसे नगरी से निकल जाने का कहा। 

वह नगरी से निकल वन में चला गया। वहाँ वन्य पशु-पक्षियों को मारकर खाने लगा। कुछ समय पश्चात वह बहेलिया बन गया और धनुष-बाण लेकर पशु-पक्षियों को मार-मारकर खाने लगा। 

एक दिन भूख-प्यास से व्यथित होकर वह खाने की तलाश में घूमता हुआ कौडिन्य ऋषि के आश्रम में पहुँच गया। उस समय वैशाख मास था और ऋषि गंगा स्नान कर आ रहे थे। उनके भीगे वस्त्रों के छींटे उस पर पड़ने से उसे कुछ सद्‍बुद्धि प्राप्त हुई। 

वह कौडिन्य मुनि से हाथ जोड़कर कहने लगा कि हे मुने! मैंने जीवन में बहुत पाप किए हैं। आप इन पापों से छूटने का कोई साधारण बिना धन का उपाय बताइए। उसके दीन वचन सुनकर मुनि ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम वैशाख शुक्ल की मोहिनी नामक एकादशी का व्रत करो। इससे समस्त पाप नष्ट हो जाएँगे। मुनि के वचन सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार व्रत किया।

हे राम! इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप नष्ट हो गए और अंत में वह गरुड़ पर बैठकर विष्णुलोक को गया। इस व्रत से मोह आदि सब नष्ट हो जाते हैं। संसार में इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है। इसके माहात्म्य को पढ़ने से अथवा सुनने से एक हजार गौदान का फल प्राप्त होता हैअगले दिन, द्वादशी तिथि को पूजा- पाठ के बाद ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा तथा कलश सहित विदा करना चाहिए। अंत में भगवान विष्णु तथा कृष्ण का स्मरण करते हुए स्वयं तथा सपरिवार मौन रह कर भोजन ग्रहण करना चाहिए। 

मोहिनी एकादशी व्रत का महत्त्व

मोहिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से सभी प्रकार के पाप तथा दुख मिट जाते हैं। यह व्रत मोह बंधन से मुक्ति दिलाता है। देवी सीता की खोज के दौरान भगवान राम ने तथा महाभारत काल में युधिष्ठिर ने मोहिनी एकादशी व्रत कर अपने सभी दुखों से मुक्ति पाई थी।

ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ निर्जला एकादशी व्रत (Nirjala Ekadashi vrat)

ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ निर्जला एकादशी व्रत -

पद्म पुराण के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi vrat) कहा जाता है। इसे 'पांडव एकादशी' के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत में बिना पानी पिये उपवास किया जाता है।

निर्जला एकादशी व्रत विधि

निर्जला एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति को एक दिन पहले यानि दशमी के दिन से ही नियमों का पालन करना चाहिए। एकादशी के दिन "ॐ नमो वासुदेवाय" मंत्र का जाप करना चाहिए। निर्जला एकादशी के दिन गोदान का विशेष महत्त्व है। निर्जला एकादशी के दिन दान-पुण्य और गंगा स्नान का विशेष महत्त्व होता है ।

द्वादशी को तुलसी के पत्तों आदि से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पूजा- पाठ के बाद ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा तथा कलश सहित विदा करना चाहिए। अंत में भगवान विष्णु तथा कृष्ण का स्मरण करते हुए स्वयं तथा सपरिवार मौन रह कर भोजन ग्रहण करना चाहिए।

निर्जला एकादशी व्रत का महत्त्व

पद्म पुराण के अनुसार ज्येष्ठ माह की शुक्ल एकादशी को यानि निर्जला एकादशी के दिन व्रत करने से सभी तीर्थों में स्नान के समान पुण्य मिलता है। इस दिन जो व्यक्ति दान करता है वह सभी पापों का नाश करते हुए परमपद प्राप्त करता है। इस दिन अन्न, वस्त्र, जौ, गाय, जल, छाता, जूता आदि का दान देना शुभ माना जाता है।

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ पद्मा एकादशी या परिवर्तिनी एकादशी (Padma Ekadashi)

हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मा एकादशी या परिवर्तिनी एकादशी (Padma Ekadashi) कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन आषाढ़ मास से शेष शैय्या पर सोए भगवान विष्णुजी करवट बदलते हैं। इस शुभ दिन भगवान विष्णु और उनके अवतार वामन रूप की पूजा की जाती है तथा पालकी में मूर्तियों को स्थापित कर शोभा यात्रा निकाली जाती है। 

पद्मा एकादशी व्रत विधि 

एकादशी व्रत के नियमों का पालन व्रत के एक दिन पहले यानि दशमी के दिन से ही शुरू हो जाता है। दशमी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत संकल्प करना चाहिए। पद्मा एकादशी व्रत वाले दिन भगवान विष्णु तथा उनके वामन अवतार का धूप, तुलसी के पत्तों, दीप, नेवैद्ध व फूल आदि से पूजा करने का विधान है। इस शुभ व्रत तिथि के दिन सात कुम्भों यानि घड़ों को अलग- अलग अनाजों (गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौं, चावल और मसूर) से भरकर रखा जाता है। पद्मा एकादशी से एक दिन पहले यानि दशमी के दिन गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौं, चावल तथा मसूर नहीं खानी चाहिए।

स्थापित किए हुए घड़े के ऊपर भगवान विष्णु तथा वामन अवतार की मूर्ति रखकर पूजा करने का विधान है। पद्मा एकादशी व्रत वाली रात को भगवान का भजन- कीर्तन या जागरण करना चाहिए। पद्मा पुराण के अनुसार व्रत अगले यानि द्वादशी के दिन भगवान का पूजन कर ब्राह्मण को भोजन और दान देने का विधान बताया गया है। अंत में सपरिवार बैठ कर मौन रह कर भोजन ग्रहण करना चाहिए।


पद्मा एकादशी व्रत का महत्त्व

पद्म पुराण के अनुसार पद्मा एकादशी व्रत करने से साधक के सभी पापों का नाश तथा सभी भोग वस्तुओं की प्राप्ति होती है। इस महान व्रत के प्रभाव से व्रती, मोक्ष तथा मृत्यु के बाद बैकुंठ धाम प्राप्त करता है।

कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ रमा एकादशी व्रत (Rama Ekadashi Vrat)

कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी अर्थात्‌ रमा एकादशी व्रत -

हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है। रमा एकादशी (Rama Ekadashi) के दिन भगवान विष्णु का विशेष विधि से पूजन किया जाता है। यह व्रत देवी लक्ष्मी के नाम (रमा) से जाना जाता है, जो दीपावली से चार दिन पहले आता है। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए व्रत करने का विधान है। रमा एकादशी के प्रभाव से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, तथा वे मोक्ष प्राप्त करता है।

रमा एकादशी व्रत विधि (Rama Ekadashi Vrat Vidhi in Hindi)

एकादशी व्रत के नियमों का पालन व्रत के एक दिन पहले यानि दशमी के दिन से ही शुरू हो जाता है। रमा एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत संकल्प करना चाहिए। एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए है। इसके बाद भगवान विष्णु का धूप, पंचामृत, तुलसी के पत्तों, दीप, नेवैद्ध, फूल, फल आदि से पूजा करने का विधान है। 

रमा एकादशी व्रत वाली रात को भगवान का भजन- कीर्तन या जागरण करना चाहिए। पद्म पुराण के अनुसार व्रत अगले यानि द्वादशी के दिन भगवान का पूजन कर ब्राह्मण को भोजन और दान (विशेष: कपड़े, जूते, छाता, आदि) देने का विधान बताया गया है। अंत में सपरिवार बैठ कर मौन रह कर भोजन ग्रहण करना चाहिए।

रमा एकादशी व्रत का महत्त्व

पद्म पुराण के अनुसार रमा एकादशी व्रत कामधेनु और चिंतामणि के समान फल देता है। इसे करने से व्रती अपने सभी पापों का नाश करते हुए भगवान विष्णु का धाम प्राप्त करता है। मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से धन- धान्य की कमी दूर होती है।